समता का रथ

अनगिनत मै प्रहार झेल
समता का रथ लाया हूँ
तप्त रेत पर चलकर मै
यहाँ तक आया हूँ
ना थका, ना रुका, ना झुका
बाहर बैठा पढ़ा मै
तब काल कपाल के
कुत्सिक अक्षर मिटाकर
मै यहाँ तक आया हूँ
पढ़लि दुनियाकी किताबे
समजली उनकी खोकली बाते
खा कर विषमताकी लाते
मै यहाँ तुम्हे लाया हूँ !

बदलदी है तस्वीर दुनियाकी
लिखी नयी तासीर जमानेकी
चला जावूंगा मै एक दिन
तब ये करवा रुक ना पाए
तब एक कदम आगे बढ़ना
नया कोई नेता चुनना
उसमे सच्चाई के गुण देखना
नेटिव हो और हो ईमानदारी
लेना ये खबरदारी
ना हो उसमे ब्रह्मिनिस्म
ना ब्राह्मण , ना जनेऊ
ना वेद ना भेद
ना वर्ण ना जाती
हिन्दू धर्म को वो हो
पुनर्व्याख्याता
कबीर का दास
बीजक का ज्ञाता
तब ये समता का रथ
फिर चल जायेगा
रुका कारवा लक्ष पायेगा !

तब हो नेटिविज़्म का स्वीकार
करो सब को नमस्कार
विदेशी ब्राह्मण अलग करो
जैचंद की नकेल धरो
जय हिन्द कहो ,
जय भारत कहो
जय नेटिव कहो
व्यक्तिवाद से दूर रहो
इस रथ की है ये मांग
नहीं चलेगा यहाँ कोई स्वांग
हम सब मूल भारतीय
हिन्दू भाई
हिन्द से इंडिया आयी
भारत अशोक ये हमारे सम्राट
सोच थी उनकी सहि मे विराट
फिर ये विदेशी ब्राह्मण राज
कैसे , कहासे आया
क्यों समता , बंधुता का
रथ रुक पाया
कुछ होगी हम में भी कमिया
सोच में होगी कुछ खामिया
वो सब दूर करेगा नेटिविज़्म
फिर खुशियोंसे दामन
भर देगा नेटिविज़्म।

#जनसेनानी , #Jansenani कल्याण


१७ अगस्त , २०१८

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