ग़ज़ल : हसी की आड़ में

हसी की आड़ में आँसू क्यूँ छलक आये है
बतावो क्या गम है जो बेवक्त मुस्कुराये है

चेहरा है गमसीन उदासी है आंखोमे
कहते हो खुश हूँ पर छलकते है गम बातोंमे
क्या बात है सुहागरात पर रोये जाए है
हसी की आड़ में आंसू क्यूँ छलक आये है

लगता है उदासी की है ये घडी तुम्हारे लिए
नहीं छूट रहे है प्यार के यादोंके सुहाने लहमे
मुँह फेर कर तुम गम को छुपाये जाए है
हसी की आड़ में आंसू क्यों छलक आये है

क़ुदरत का खेल अजीब बनाता है जोडिया
तोड़ देता है दिलोंको डालता है समाज बेड़िया
न बन कमजोर बतावो, सनम अब भी भाये है
हसी जी आड़ में आँसू क्यों छलक आये है

उदास न हो अजनबी नहीं है हम अभी हमसफ़र
जुदा है तुम्हारा मेरा रास्ता अलग है तुम्हारी डगर
खुश रहो तुम यही दुवाए मेरे लबोपे आये है
हसी की आड़ में आंसू क्यों छलक आये है

#जनसेनानी #Jansenani कल्याण
१० जून , २०१८

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